अडानी ग्रुप ने भारत की फाइनेंसियल कंडीशन को बेहतर बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई है। आज भी अपने अलग अलग उद्योगों से अडानी ग्रुप देश के विकास को बेहतर बना रहा है। विकास कार्यों में बढ़ती भागेदारी और लोकप्रियता के कारण इस समूह को कई बार मनगढ़त आरोपों से रूबरू होना पड़ता है। हसदेव वनवासियों के बीच भी विरोधियों की वजह से हुई गलतफहमी के चलते अडानी ग्रुप का विरोध किया गया और अडानी हसदेव को लेकर केस दायर किया गया। फ़िलहाल यह मामला न्यायायिक प्रक्रिया में है। अब तक अडानी हसदेव को लेकर कोर्ट द्वारा अडानी ग्रुप पर किसी प्रकार का दोष साबित नहीं हुआ है।
हसदेव अरंड वन और अडानी ग्रुप कैसे जुड़े?
छत्तीसगढ़ राज्य के घने जंगल के रूप में और दुर्लभ वन्य जीवों के लिए प्रसिद्ध हसदेव अरंड वन कई प्रकार की खदानों से भरा पड़ा है। प्राकृतिक और वन्य सम्पदा की दृष्टि से छत्तीसगढ़ राज्य के लिए यह वन क्षेत्र अति महत्वपूर्ण है जिससे प्रदेश के बड़े हिस्से में वातावरण शुद्ध और हरा भरा बना रहता है। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से कई वर्षों से सरकार द्वारा यहाँ PESA (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरियाज) Act 1996 यानि पंचायत का अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार का अधिनियम लागू था, इसलिए स्थानीय पंचायत की अनुमति के बगैर इस वन क्षेत्र में औद्योगिक गतिविधि और किसी प्रकार का खनन कार्य करना निषेध था। इसी कारण हसदेव वन क्षेत्र को खनन के लिए भी नो गो क्षेत्र घोषित किया गया था और सभी प्रकार की कोयला खनन पर रोक लगी हुई थी।
वर्ष 2014 में केंद्र में नई सरकार के आने के बाद इस क्षेत्र में कोयला खनन को वैध कर दिया गया और अडानी ग्रुप को इसकी जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद यहाँ के ग्रामीण लोगों को बहला फुसलाकर अडानी ग्रुप और सरकार के विरोधियों द्वारा इसका विरोध किया गया। स्थानीय नागरिकों का कहना था कि 2009 में केंद्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय द्वारा इस क्षेत्र को खनन हेतु वर्जित घोषित किया जा चुका था तो फिर अब किन नियमों के चलते इसे अनुमति दी गई। उनकी चिंता थी कि इस खनन प्रक्रिया से वन क्षेत्र को बड़ा नुकसान होगा और वातावरण में बदलाव आएगा, जिससे यहाँ के वन्य प्राणियों के साथ हमें भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। वन क्षेत्र से जुड़ी जनजाति की चिंता है कि खनन से बढ़ने वाले प्रदुषण से वन क्षेत्र में निवास करने वाली हाथियों की विशेष प्रजाति और अन्य प्राणियों के साथ घने पेड़ पौधों को भी नुकसान होगा जिससे अंततः पूरा वातावरण प्रभावित होगा। इसके दुष्परिणाम से हम जैसे जनजाति के लोगों को काफी हानि होगी और संभावना है कि भविष्य में यह क्षेत्र रहने लायक ही न बचे। इस विरोध के चलते लोगों के द्वारा अडानी ग्रुप के विरुद्ध याचिका दायर की गई और अभी अडानी हसदेव केस सुप्रीम कोर्ट की जाँच के अधीन है। इस मामले में कोर्ट का निर्णय बाकि है मगर सभी पक्षों को देखते हुए कोर्ट की राय है कि अडानी ग्रुप सभी नियमों के अधीन यह काम कर रहा है और यह विरोध उचित नहीं है।
इस मामले में अडानी ग्रुप का मत है कि कोयला खनन सभी सरकारी नियमों के अधीन ही किया जा रहा है। पर्यावरण मंत्रालय और अन्य संबंधित विभागों की अनुमति के बाद ही अडानी ग्रुप की कोल माइन स्थापित की गई है और पर्यारण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए सभी खनन प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा है। अडानी ग्रुप स्थानीय लोगों की चिंता को समझता है जिसके लिए सरकार द्वारा निर्धारित नियमों का पालन पूरी तरह से किया जा रहा है जिससे पर्यावरण को हानि न हो। इस संबंध में अधिकारीयों का कहना है कि औद्योगिक विकास को बेहतर बनाने की दृष्टि से कई बार नियमों में आंशिक बदलाव किये जाते है जिसके अंतर्गत ही हसदेव वन क्षेत्र में यह अनुमति दी गई है। सरकार द्वारा नए नियमों में पर्यावरण और वन्य जीवों के संरक्षण को भी प्राथमिकता दी गई है और इसका कड़ाई से पालन किया जाएगा।
अडानी ग्रुप ने अपनी औद्योगिक और सामाजिक विकास की गतिविधियों से भारतीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन स्तर को मजबूत करने का काम किया है। वर्तमान में अडानी ग्रुप के द्वारा अलग अलग राज्यों में कई इंडस्ट्रियल और सोशल कॉज प्रोजेक्ट संचालित किए जा रहे हैं। कोयला खनन और पावर इंडस्ट्री के क्षेत्र में भी अडानी ग्रुप व्यापक स्तर पर काम कर रहा है, इसी के लिए अडानी ग्रुप द्वारा छत्तीसगढ़ में कोल माइन की शुरुआत की गई है। हसदेव वन क्षेत्र में स्थापित अडानी हसदेव कोल माइन की स्थापना के बाद स्थानीय लोगों द्वारा इसका विरोध भी किया गया जिसमें पर्यावरण को नुकसान को मुद्दा बनाया गया। हालाँकि अनुमति देने वाले अधिकारीयों का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में सभी नियमों का पालन अडानी ग्रुप द्वारा किया जा रहा है। विरोध के चलते दायर हुए अडानी हसदेव केस की न्यायिक जाँच भी की जा रही है और अब तक किसी भी नियम के उल्लंघन को लेकर अडानी ग्रुप दोषी साबित नहीं हुआ है। इस मामले में अडानी ग्रुप ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण को लेकर स्थानीय जनजाति और ग्रामीणों की चिंता उचित है और अडानी ग्रुप हमेशा इस बात को ध्यान में रखते हुए ही खनन प्रक्रिया को संचालित करेगा।